बंगोली गांव में बच्चों के बीच वितरित की गई साहित्यिक किताबें
बंगोली (रायपुर)। साहित्यकारों, कलाकारों, बुद्धिजीवियों और चिंतकों का साझा मंच जन संस्कृति मंच ने अपनी स्थापना के चार दशक पूर्ण कर लिए हैं। इसी परिप्रेक्ष्य में अब ‘अभिव्यक्ति के सारे खतरे उठाने ही होंगे’ के संकल्प के साथ छत्तीसगढ़ जसम ने भी 40 वाँ स्थापना समारोह रायपुर जिले के ग्राम बंगोली में किसानों-मजदूरों और ग्रामीण बच्चों के बीच दो नवंबर को मनाया।
इस मौके पर छत्तीसगढ़ जसम के संयोजक नामचीन आलोचक सियाराम शर्मा ने जन संस्कृति मंच की स्थापना, उद्देश्य और कार्यशैली की जानकारी दी। देश की विषम परिस्थितियों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि आज सत्ता बेहद आक्रामक और हमलावर है। बुद्धिजीवियों को अर्बन नक्सली कहकर प्रताड़ित किया जा रहा है। देश के बहुत से लोग जो लिखने-पढ़ने के काम में लगे हुए हैं और विचारक हैं, आज भी वें जेलों में बंद है। जमानत का अधिकार होने के बावजूद उन्हें जमानत नहीं दी जा रही हैं। उन्होंने कहा कि घृणा, उन्माद और हिंसा के इस दौर में साहित्यिक और सांस्कृतिक कर्म कठिन बना दिया गया है। बावजूद इसके प्रतिबद्ध लेखक और रचनाकार अभिव्यक्ति के ख़तरों को उठाते हुए जुटे हुए हैं।
जन संस्कृति मंच रायपुर की अध्यक्ष जया जादवानी ने कहा कि आज का रचनाकार जरूरत से ज्यादा आत्ममुग्धता का शिकार हो गया है। उन्होंने कहा कि लेखक और रचनाकार के नाम पर जो लोग सत्ता की स्तुति में लगे हुए हैं, उन्हें नहीं मालूम कि वे खुद अपना कद छोटा कर रहे हैं। लेखक की जिम्मेदारी सत्ता के लिए नहीं, जनता के लिए होनी चाहिए।
जन संस्कृति मंच के वरिष्ठ सदस्य नरोत्तम शर्मा ने ग्राम बंगोली के क्रांतिकारी इतिहास की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि नफ़रत के इस दौर में गंगा-जमुनी तहजीब की सक्त आवश्यकता है। उन्होंने बताया कि किसानों को फसल बीमा होने के बावजूद मुआवजा नहीं मिल पा रहा है। जसम की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य दीपक सिंह ने गौरी लंकेश, गोविंद पानसारे, कलबुर्गी की हत्याओं का मामला उठाते हुए सांप्रदायिक, फासीवादी ताकतों को परास्त करने का आह्वान किया।
संस्कृतिकर्मी राजकुमार सोनी ने कहा बंद कमरे में लिखना अच्छी बात हो सकती है, लेकिन बदलाव के लिए लेखक और संस्कृतिकर्मियों को जनता के बीच जाना ही होगा।
जसम की वरिष्ठ साथी रुपेंद्र तिवारी ने कहा कि फासीवादी ताकतें चाहती हैं कि साहित्यकार अंधा, गूंगा और बहरा बन जाए और वही लिखे जो सरकार चाहती है, लेकिन एक सच्चा रचनाकार अपनी अभिव्यक्ति को कैद नहीं होने देगा।
पत्रकार साहित्यकार समीर दीवान ने छत्तीसगढ़ में शिक्षा की वर्तमान स्थिति पर चिंता जाहिर की। उन्होंने कहा कि बच्चे ठीक से पढ़-लिख सके इसके लिए हम सबको अपने संसाधनों से गांव में लायब्रेरी अवश्य खोलनी चाहिए।
सांस्कृतिक सत्र में वर्षा बोपचे ने ‘वे सारी हमारी कतारों में शामिल’ जनगीत प्रस्तुत किया। सुनीता शुक्ला ने गोरख पाण्डेय के प्रसिद्ध गीत ‘समाजवाद बबुआ धीरे-धीरे आई’ की सुमधुर प्रस्तुति दी। शास्त्रीय गायन से अजुल्का सक्सेना ने वातावरण को मंत्रमुग्ध कर दिया। पूर्णिमा साहू ने ‘मकड़ी’ शीर्षक से कविता का पाठ किया। रूपेन्द्र तिवारी ने कविता ‘है भरोसा अभी तक गांव में’ की धारदार प्रस्तुति दी। प्रतिभा बैरागी, समीर दीवान, अजय शुक्ला, भगवती खूंटे, भागीरथी वर्मा आदि ने अपनी कविताओं से मंच को ऊंचाई दी। सुरेश वाहने ने सामयिक लघुकथा ‘मुर्गा’ का पाठ किया। सुलेमान खान, मनीष वर्मा ने प्रेरणादायक गीतों को प्रस्तुत कर समां बांधा। इस मौके पर बच्चों ने अपने पारिवारिक परिचय के साथ कविताओं का पाठ किया। नरोत्तम शर्मा ने बच्चों को मैडल पहनाकर सम्मानित किया। जन संस्कृति मंच ने लोक जागरण और सांस्कृतिक चेतना के प्रसार के लिए गाँव की गलियों में पैदल मार्च किया। गाँव के बच्चों को कॉपी-किताब, पेन, वाटर बॉटल के साथ-साथ साहित्यिक पुस्तकों का वितरण किया गया।
कार्यक्रम का कुशल संचालन सुलेमान ने किया। आभार प्रदर्शन बृजेन्द्र तिवारी ने किया। इस आयोजन में नीलिमा मिश्रा, डॉ.संजू पूनम, रवि अमरानी, छाया, अजय शुक्ला, इंद्र कुमार राठौर, मोहित जायसवाल, भागीरथ वर्मा, सुनीता शुक्ला, संतोष बंजारा, बिसहत कुर्रे, प्रेमलाल कोहरे, धर्मेंद्र बैरागी, खंझन सिंह, अंकित साहू, धनेश्वर वर्मा, टिकेश्वर शर्मा, शाश्वत साहू, उत्कर्ष तिवारी सहित ग्रामीण जन मौजूद थे।
उक्त जानकारी जन संस्कृति मंच दुर्ग-भिलाई के सचिव सुरेश वाहने ने दी।

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