June 27, 2025

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अहिवारा में अवैध कब्जों पर नगर सरकार की खींचतान, सीएमओ पर राजनीतिक दबाव बढ़ा

अहिवारा में अवैध कब्जों पर नगर सरकार की खींचतान, सीएमओ पर राजनीतिक दबाव बढ़ा

शासन की ज़मीन पर बहुमंज़िला कब्ज़े, नगर में कानून की खुलेआम अवहेलना
बिना अनुमति के तेजी से हो रहे निर्माण कार्य, बढ़ती अराजकता

सीएमओ की सख़्ती बनाम परिषद की चुप्पी: कार्रवाई पर सियासी विराम
नगर पालिका अधिकारी अंकुर पांडे के प्रयासों को राजनीतिक दखल से झटका

रानी सागर तालाब प्रकरण से उभरा नया भ्रष्टाचार विवाद
बिना रॉयल्टी स्वीकृति के शुरू हुआ कार्य, नागरिकों की नाराज़गी के बाद रोका गया

नगर पालिका बैठक में तीखी बहस से गरमाया माहौल
सीएमओ बनाम अध्यक्ष-पार्षद, अवैध निर्माण पर कार्रवाई को लेकर टकराव

       नंदिनी अहिवारा। नंदिनी अहिवारा में अवैध कब्जों का मुद्दा नगर में गहन चर्चा का विषय बना हुआ है। नगर के विभिन्न क्षेत्रों में बिना अनुमति बहुमंजिला निर्माण कार्य खुलेआम चल रहे हैं, जिससे शासन की जमीन का राजस्व और उपयोग दोनों प्रभावित हो रहा है।

       हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि पुराने कब्जाधारी अब दो से तीन मंज़िला भवन बना रहे हैं, जबकि नए लोगों द्वारा तेज़ी से सरकारी भूमि पर कब्जा किया जा रहा है। इस स्थिति को रोकने के लिए नगर पालिका अधिकारी अंकुर पांडे द्वारा कानूनी कार्रवाई शुरू की गई है, लेकिन राजनीतिक हस्तक्षेप और परिषद की उदासीनता इन प्रयासों को बाधित कर रही है।

भ्रष्टाचार को लेकर विवाद

       भ्रष्टाचार का मामला उस समय और गंभीर हो गया जब वार्ड क्रमांक 14 में रानी सागर तालाब की सफाई और गहरीकरण का कार्य बिना रॉयल्टी स्वीकृति के प्रारंभ कर दिया गया। नागरिकों ने जब इस पर नाराज़गी जताई, तो काम को बीच में रोक दिया गया।

नगर पालिका बैठक में तीखी बहस

       सूत्रों के अनुसार, हाल ही में नगर पालिका की सामान्य बैठक में सीएमओ अंकुर पांडे और नगर पालिका अध्यक्ष व पार्षदों के बीच तीखी बहस हुई। इस बहस ने पूरे नगर में एक नई राजनीतिक हलचल पैदा कर दी है। बताया जा रहा है कि अवैध निर्माणों पर कार्रवाई को लेकर सीएमओ पर राजनीतिक दबाव डाला जा रहा है।

प्रश्नचिन्ह: क्या वाकई भ्रष्टाचार मुक्त होगी अहिवारा?

       एक ओर अधिकारी कार्रवाई की बात कर रहे हैं, तो दूसरी ओर राजनीतिक दखल इस पर रोक लगाने की कोशिश में है। ऐसे में भ्रष्टाचार मुक्त नगर पालिका की उम्मीदों को झटका लगता दिख रहा है।
अब सवाल उठता है कि — क्या प्रशासनिक इच्छाशक्ति, राजनीतिक दबाव के आगे टिक पाएगी?